राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी अंबिका राही radha teri khatir hamne aaj bhi bansi bajai thi ambika rahee poem

Ambika "rahee" poem

राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी

सारा दिन तेरी यादों ने मुझे बेचैन बनाई थी
तेरे सिवा कुछ नजर ना आया ऐसे शुद्ध बुद्ध भुलाई थी
दिल में मेरे तेरी सूरत एक देवी सी जगह बनाई है
तुझसे मिलने की खुशियों ने मेरी नींद भगाई थी

राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी

संग जीने मरने की राधा जो तुम कसमे खाई थी
भूल गए वह पल क्या राधा जब देख मुझे मुस्काई थी
प्यार की बातें दिल में रखकर बहुत मुझे तडपाई थी
मुझे मनाने की खातिर जब तुम भी आंसू बहाई थी
फिर से इन बीती यादों ने मुझे इतना मजबूर बनाई थी

राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी

नींद नहीं आती है अक्सर जब तेरी यादें आती है
बहुत रुलाती है वह हर पल जब मुझे अकेला पाती है
उन राहों पर आज भी हमने अपनी साइकिल घुमाई थी
तेरी एक झलक की खातिर दूर तक नजर दौड़ाई थी

राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी

हो जाए पूरा अधूरा इश्क हमारा और तेरी मुस्कान से सवेरा हो
जिंदगी के हर मोड़ पर हरदम साथ तुम्हारा हो
खो जाता ए राहीे अब तक तुमने दिशा दिखाई थी

राधा तेरी खातिर हमने आज भी बंसी बजाई थी

अंबिका राही

www.ambikaraheepoem.blogspot.com

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